Monday, July 7, 2008

chinta

chinta chinta kyon main itni chinta karta hoon "vyarth ki baaton ki' ,meri patni mujhse aksar kahti hai.roz subah uthkar log acchi-achhi baatein karte hain taki man prasanna rahe aur tum akhbaar par nazar daalte hi nirasha se bhari baate karne lagte ho.akhir akhbaar me aisa kya hota hai.accha hua main tumhari tarah akhbaar -magazine nahin padhti varna ghar chalana hio mushkil ho jaata. अब मैं उसको कैसे समझाऊँ की मैं उन कुछ भारतीयों में से हैं जिन्हें देश की चिंता अपने घर से ज़्यादा रहती है.वैसे उसकी बात भी ठीक है अगर वोह भी मेरी तरह होती तो शायद घर निराशा से ही भरा रहता क्योंकि इन दिनों देश के जो हालात हैं उसमे आशा से भरे होने के लिए कुछ नहीं है.दुनिया कहती है की भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है पर उन्हें शायद यह नही पता की यहाँ जंगलराज है.ऐसा जंगलराज जिसे थोड़ा सा सभ्यता का आवरण दे दिया गया है.वरना रूल यहाँ भी वही लागू होते हैं। जिसके पास ताक़त है,वही सर्वश्रेष्ठ है .कानून भी उसी का,सरकार भी उसी की.ऐसा नहीं है की मैं घोर निराहवादी हूँ पर कभी कभी मन सचमुच ही इतना परेशान हो उठता है की समझ में नहीं आता की क्या करुँ पर क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ.कितनी बार आपने ग़रीबों या बिना पहुँच वालों को सचा न्याय मिलते हुए देखा है.एक nitish katara,एक jessica लाल से यह saabit नहीं हो जाता की देश में न्याय की bahulta हो गई है.और sachhe न्याय से मेरा matlab यह है की न्याय समय पर मिला हो.यदि न्याय maangne wala ही इस दुनिया से चला गया हो intezaar करते करते तो उस न्याय का फायदा?